राजनितिक पार्टी या तो गरीबो के लिए काम करती है या अमीरो के लिए और हम मिडिल क्लास वालो को क्या मिलता है जिनकी ज़िन्दगी EMI भरने में ही कट जाती है...
अगर हम कोई सरकारी योजना का लाभ उठाना चाहे तो लोग कहते है 'मिडिल क्लास होकर गरीबो का हक़ खाता है' और अगर अपना बिज़नस करना चाहे तो जेब आपकी औकात का पता बता देती है, और कमाने अगर विदेश चले गए तो महान् देशवासियो का एक और ताना की 'जो देश का ना हुआ वो किसी और का क्या होगा' कौनसे देश की बात करते हो भाई, जो तुम साल में सिर्फ दो दिन याद करते हो...
और तो और हम खुल कर प्यार भी नहीं कर सकते धर्म के ठेकेदारो के नियम हमारे लिए ही तो बने है क्योंकि गरीब का कोई ईमान धर्म नहीं होता और अमीर तो अश्लील हो चला है, समाज की बेड़िया आखिरकार मिडिल क्लास को पहननी पड़ती है...
अच्छा कानून कोर्ट नियम कायदे भी मिडिल क्लास के लिए बने है, अमीर खुले में कोई शौक करे तो स्टाइल है क्योकि वो पैसे वाला है और अगर हम कर दे तो भरो फाइन वरना चलो अंदर...
अच्छा एजुकेशन में भी हम ही शिकार बनते है जनरल होने का अपराध जो कर बैठे है, गरीब पढ़े तो सरकारी स्कूल खुला है और न पढ़े तो NGO ज़िंदाबाद और अमीरो का तो बोर्डिंग, इंटरनेशनल स्कूलो पर मालिकाना हक़ है, फिर भी हम जैसे तैसे अपनी पढाई का संघर्ष पूरा करते है लेकिन नौकरी का क्या ? वहां पर भी कोटा सिस्टम आपकी मजबूरी और लाचारी पर हंस रहा होता है अपने सपनो की धज्जियाँ उड़वाने के बाद मिडिल क्लास प्राइवेट कंपनी में अपने सपने और कमर तुड़वाने को हाज़िर है...
अब रही बात इलाज़ की तो गरीब का सरकारी अस्पताल भला और गवर्नमेंट तो मुफ़्त दवाइयाँ भी दे रही है, दूसरी तरफ अमीरो के लिए तो 5 स्टार हॉस्पिटल खुले है जहाँ एक दिन का खर्च मिडिल क्लास के महीने का बजट होता है मिडिल क्लास की लाइफ तो कैश लेस के चक्कर में लेस होती जा रही है...
इतना शोषण होने के बाद भी हम मिडिल क्लास देश की सरकार बनाने में सबसे ज़्यादा योगदान करते है, बॉर्डर पर सबसे ज्यादा शहीद होते है, सबसे ज्यादा दान पुण्य करते है, सबसे ज़्यादा रस्मो रिवाज़ों को निभाते है, त्यौहार हमीं से, रिश्ते हमीं से, अपनापन हमीं से मेहमान नवाज़ी हमीं से, ख़ुशी हो या ग़म चलते रहते है हम